Month: December 2018

39-53 कर्मयोग का विषय

Bhagvad Gita Chapter 2 Sankhyog Part 4: कर्मयोग का विषय एषा तेऽभिहिता साङ्‍ख्ये बुद्धिर्योगे त्विमां श्रृणु । बुद्ध्‌या युक्तो यया पार्थ कर्मबन्धं प्रहास्यसि ॥ भावार्थ : हे पार्थ! यह बुद्धि तेरे लिए ज्ञानयोग के विषय में कही गई और अब तू इसको कर्मयोग के (अध्याय 3 श्लोक 3 की टिप्पणी में इसका विस्तार देखें।) विषय में …

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31-38 क्षत्रिय धर्म के अनुसार युद्ध करने की आवश्यकता का निरूपण

Bhagvad Gita Chapter 2 Sankhyog Part 3 :क्षत्रिय धर्म के अनुसार युद्ध करने की आवश्यकता का निरूपण स्वधर्ममपि चावेक्ष्य न विकम्पितुमर्हसि । धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्क्षत्रियस्य न विद्यते ॥ भावार्थ : तथा अपने धर्म को देखकर भी तू भय करने योग्य नहीं है अर्थात्‌ तुझे भय नहीं करना चाहिए क्योंकि क्षत्रिय के लिए धर्मयुक्त युद्ध से बढ़कर दूसरा …

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11-30 सांख्ययोग का विषय

Bhagvad Gita Chapter 2 Sankhyog Part 2: सांख्ययोग का विषय श्री भगवानुवाच अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे । गतासूनगतासूंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः ॥ भावार्थ : श्री भगवान बोले, हे अर्जुन! तू न शोक करने योग्य मनुष्यों के लिए शोक करता है और पण्डितों के से वचनों को कहता है, परन्तु जिनके प्राण चले गए हैं, उनके लिए और जिनके …

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01-10 अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद

Bhagvad Gita Chapter 2 Sankhyog Part 1: अर्जुन की कायरता के विषय में श्री कृष्णार्जुन-संवाद Bhagvad Gita Chapter 2 Sankhyog Part 1 संजय उवाच तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्‌ । विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः ॥ भावार्थ : संजय बोले- उस प्रकार करुणा से व्याप्त और आँसुओं से पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रों वाले शोकयुक्त उस अर्जुन के प्रति भगवान मधुसूदन ने …

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28-47 मोह से व्याप्त हुए अर्जुन के कायरता, स्नेह और शोकयुक्त वचन

Bhagvad Gita Chapter 1 Part 4: मोह से व्याप्त हुए अर्जुन के कायरता, स्नेह और शोकयुक्त वचन Bhagvad Gita Chapter 1 Part 4 अर्जुन उवाच दृष्टेवमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्‌ ॥ सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति ।  वेपथुश्च शरीरे में रोमहर्षश्च जायते ॥ भावार्थ : अर्जुन बोले- हे कृष्ण! युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध …

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20-27 अर्जुन द्वारा सेना-निरीक्षण का प्रसंग

Bhagvad Gita Chapter 1 Part 3: अर्जुन द्वारा सेना-निरीक्षण का प्रसंग अर्जुन उवाचः अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान्‌ कपिध्वजः । प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः ॥  हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते । सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ॥ भावार्थ : भावार्थ :  हे राजन्‌! इसके बाद कपिध्वज अर्जुन ने मोर्चा बाँधकर डटे हुए धृतराष्ट्र-संबंधियों को देखकर, उस शस्त्र चलने की तैयारी के समय धनुष …

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12-19 दोनों सेनाओं की शंख-ध्वनि का कथन

Bhagvad Gita Chapter 1 Part 2 दोनों सेनाओं की शंख-ध्वनि का कथन तस्य सञ्जनयन्हर्षं कुरुवृद्धः पितामहः । सिंहनादं विनद्योच्चैः शंख दध्मो प्रतापवान्‌ ॥ भावार्थ :  कौरवों में वृद्ध बड़े प्रतापी पितामह भीष्म ने उस दुर्योधन के हृदय में हर्ष उत्पन्न करते हुए उच्च स्वर से सिंह की दहाड़ के समान गरजकर शंख बजाया॥12॥ ततः शंखाश्च भेर्यश्च …

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01-11 दोनों सेनाओं के प्रधान-प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन

Bhagvad Gita Chapter 1 Part 1दोनों सेनाओं के प्रधान-प्रधान शूरवीरों की गणना और सामर्थ्य का कथन Bhagvad Gita Chapter 1 Part 1 धृतराष्ट्र उवाच  धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः । मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय ॥ भावार्थ : धृतराष्ट्र बोले- हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित, युद्ध की इच्छावाले मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया?॥1॥ Bhagvad Gita Chapter …

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